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Rashtriy Ekta per nibandh kaise likhen, vartman parivesh mein rashtriya Ekta ka Swaroop, Bharat rashtra ki sanskritik Ekta par nibandh, राष्ट्रीय एकता पर निबंध कैसे लिखें, वर्तमान परिवेश में राष्ट्रीय एकता का स्वरूप

 दोस्तों क्या आप एक निबंध लिखना चाहते हैं यदि हां तो आज हम राष्ट्रीय एकता,rashtriy Ekta per nibandh kaise likhen. वर्तमान परिवेश में राष्ट्रीय एकता का स्वरूप, भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता, राष्ट्रीय एकता : आज की अनिवार्य आवश्यकता। इन सभी topic पर एक निबंध लिखना सिखेंगे।Bharat rashtra ki Sanskriti Ekta par nibandh kaise likhen.




दोस्तों जैसा कि आप सभी जानते हैं कि state board में निबंध लिखने को दिया जाता है लेकिन निबंध के बारे में जानकारी ना होने के कारण उस topic को हम लोग छोड़ देते हैं।

यही नहीं बल्कि हमारे घर के लोग या बाहरी लोग हमसे अक्सर किसी topic पर निबंध लिखने को बोल देते हैं। लेकिन निबंध लिखना ना आने के कारण हम लोग वहां पर शर्मिंदगी महसूस करने लगते हैं।


०राष्ट्रीय एकता

०वर्तमान परिवेश में राष्ट्रीय एकता का स्वरूप

०भारत राष्ट्रीय की सांस्कृतिक एकता

०राष्ट्रीय एकता: आज की अनिवार्य आवश्यकता


इन सभी टॉपिक ऊपर नीचे दिए गए निबंध को ही लिखेंगे।




निबंध……………….

प्रस्तावना

राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य है-संपूर्ण भारत की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक एकता। हमारे कर्मकांड,पूजा- पाठ, खान पान,रहन सहन और वेशभूषा में अंतर हो सकता है; किंतु हमारे राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण में प्रत्येक दृष्टि से एकता की भावना दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार अनेकता में एकता ही भारत की प्रमुख विशेषता है।

राष्ट्र की आंतरिक शांति, सुव्यवस्था और बाहरी शत्रुओं से रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है। यदि हम भारतीय किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए तो हमारी पारस्परिक फुट का लाभ उठाकर अन्य देश हमारी स्वतंत्रता को हड़पने के प्रयास में सफल हो जाएगी

अखिल भारतीय राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में बोलते हुए भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा था- “जब-जब भी हम असंगठित हुए हमें आर्थिक और राजनीतिक रूप से इसकी कीमत चुकानी पड़ी। जब-जब भी विचारों में संकीर्णता आई, आपस में झगड़े हुए। जब कभी भी नए विचारों से अपना मुख मोड़ा, हनी ही हुई और हम विदेशी शासन के अधीन हो गए।”


बाधाएं : कारण और निवारण

राष्ट्रीय एकता की भावना का अर्थ मात्र यही नहीं है कि हम एक राष्ट्र से संबंध है। राष्ट्रीय एकता के लिए एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना भी आवश्यक है। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद हमने सोचा था कि अब पारस्परिक भेदभाव की खाई पट जाएगी; किंतु संप्रदायिकता,क्षेत्रीयता जातीयता और भाषागत अनेकता ने अब तक भी पूरे देश को आक्रांत कर रखा है।

      राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न कर देने वाले कारकों को जानना आवश्यक है, जिससे उनको दूर करने का प्रयास किया जा सके। इस प्रकार के कारण और उनके निवारण निम्नलिखित हैं-




1. संप्रदायिकता

राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा संप्रदायिकता की भावना है। संप्रदायिकता एक ऐसी बुराई है; जो मानव-मानव में फूट डालती है, दो रास्ते के बीच घृणा और भेद की दीवार खड़ी करती है, भाई को भाई से अलग करती है और अंत में समाज के टुकड़े कर देती है। स्वार्थ में लिप्त राजनीतिज्ञ संप्रदाय के नाम पर भोले भाले लोगों की भावनाओं को भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे रहते हैं। संप्रदायिक सद्भाव से तात्पर्य यह है कि हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी, जैन, बौद्ध आदि सभी मातावलंबी भारत भूमि को अपनी मातृभूमि के रूप में सम्मान प्रदान करें।

     हमें सोचना चाहिए कि हम अच्छे हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई अथवा किसी अन्य संप्रदाय के सदस्य होने के साथ-साथ अच्छे भारतीवासी भी हैं। हमें यह जानना चाहिए कि सभी धर्म आत्मिक शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन अपनाते हैं। सभी धर्मों में छोटे बड़े का भेद अनुचित ही माना गया है। सभी धर्म और उनके प्रवर्तक सत्य, अहिंसा, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर ही जोड़ देते हैं। संप्रदायिक गुप्ता दूर करने के लिए आवश्यक है कि हम दूसरे धर्म या धर्म स्थानों का भी उसी प्रकार मान्यता दें, जिस प्रकार हम अपने धर्म या पूजास्थलों को देते हैं। यदि हम अपने राष्ट्र को एक सूत्र में बांधना चाहते हैं तो इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी भारतीयों को अपना भाई समझे, चाहे वह किसी भी धर्म के मत को मानते हो।“हिंदू मुस्लिम,सिख, ईसाई आपस में सब भाई-भाई” कनारा हमारी राष्ट्रीय अखंडता का मूल मंत्र होना चाहिए।

धार्मिक एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए आवश्यक है कि हम अपने धर्म ग्रंथों के वास्तविक संदेश को समझें। विभिन्न धर्मों के आदर्श संदेशों को संग्रहित किया जाए। प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में उनके अध्ययन की विधिवत व्यवस्था की जाए, जिससे भावी पीढ़ी उन्हें अपने आचरण में उतार सकें।


2. भाषागत विवाद

भारत की विभिन्न प्रांतों की अलग-अलग बोलियां और भाषाएं हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा और उस भाषा पर आधारित साहित्य को ही श्रेष्ठ मानता है। इससे भाषा पर आधारित विवाद खड़े हो जाते हैं तथा राष्ट्र की अखंडता भांग होने के खतरे उत्पन्न हो जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा के मुंह के कारण दूसरी भाषा का अपमान या उसकी अवहेलना करता है तो वह राष्ट्रीय एकता पर ही प्रहार करता है। होना तो यह चाहिए कि अपनी मातृभाषा को सीखने के बाद हम संविधान में स्वीकृत अन्य प्रादेशिक भाषाओं को भी सीखें तथा राष्ट्रीय एकता की भावना के विकास में सहयोग प्रदान करें।


3. प्रांतीयता या प्रदेशिकता की भावना

प्रांतीयता या प्रादेशिकता की भावना भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है। कभी-कभी यदि किसी अंचल विशेष की निवासी अपने पृथक अस्तित्व की मांग करते हैं तो राष्ट्रीयता की भाषा को सही रूप में न समझने के कारण ही वे ऐसा करते हैं। इस मांग से राष्ट्रीय एकता और अखंडता का विचार ही समाप्त होने लगता है।



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