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आदर्श शिक्षक पर निबंध, मेरा प्रिय शिक्षक पर निबंध, राष्ट्रीय निर्माण में शिक्षक की भूमिका,Essay on ideal teacher,Essay on my dear teacher,

दोस्तों आदर्श शिक्षा, मेरा प्रिय शिक्षक और राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध लिखना जानते हैं। इन सभी Topic पर आपको आज हम एक निबंध लिखना सिखाएंगे। यदि यह निबंध आपको पसंद आता है तो इस निबंध के अपने दोस्तों में भी शेयर जरूर कीजिएगा। जिससे वे लोग भी एक अच्छा निबंध लिखना सीख जाएंगे।


सबसे पहले बात करें,तो एक सुंदर सा निबंध लिखने में, हमें निम्नलिखित heading को ध्यान देना चाहिए और इसी तरह आपको भी निबंध लिखना चाहिए।



1. प्रस्तावना-गुरु का महत्व

2. वर्तमान युग की शिक्षा प्रणाली और शिक्षक

3. मेरे विद्यालय के आदर्श शिक्षक

4. उनके गुण

5. विद्यार्थी में उनका सम्मान

6. उपसंहार


आदि टॉपिको के मदद से हम लोग आदर्श शिक्षक पर निबंध लिखना सीखेंगे।



            निबंध-लेखन


प्रस्तावना ( Preface )

गुरु को ईश्वर से भी अधिक और प्रथम पूज्य माना गया है क्योंकि वही तो प्रभु दर्शन का ज्ञान कराता है। निश्चय ही मानव जीवन के निर्माण में गुरु अथवा शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। व्यक्ति के जीवन का निर्माण करने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका उसी तरह होती है जिस तरह कुम्हार को एक मिट्टी के बर्तन बनाने में होती है। अर्थात जिस प्रकार व अंदर से हाथ का सहारा देकर तथा बाहर से पीट-पीटकर घड़ी को सुंदर और सुडौल रूप प्रदान करता है, उसी प्रकार शिक्षक व विद्यार्थी के समस्त दुर्गुणों को दूर कर उसी जीवन में सफलता प्रदान करने के लिए ज्ञान प्रदान करता है। इसी संदर्भ में कबीर दास जी ने एक अच्छी बात कही है-

   गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है,

   गढ़ि-गढ़ि काढ़ खोट।

   अंतर हाथ सहार दै,

     बाहर मारे चोट।।


वर्तमान युग की शिक्षा- प्रणाली और शिक्षा ( Present day education system and teachers )

आज न वह गुरुकुल है जहां विद्यार्थी पूर्णत: गुरु के आश्रम में निवास करता हुआ विद्या अर्जन किया करता था और न वें गुरु ही है। आज की शिक्षा प्रणाली में शिक्षक एक वेतन भोगी कर्मचारी है और शिक्षार्थी शुल्क प्रदाता। अर्थात हमारी शिक्षा प्रणाली पैसों पर बिकती है। परंतु आज भी विद्यार्थी का भविष्य शिक्षक के ऊपर ही निर्भर है। वह विद्यार्थी को सद्गुणों,सदविचारों के साथ साथ जीवन उपयोगी शिक्षा प्रदान करता है। आज की इस भौतिक अर्थ प्रधान युग में जीवन के सभी क्षेत्रों में जिस प्रकार जीवन मूल्यों और मान्यताओं में गिरावट आई है, उसी प्रकार शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी में गिरावट आई है। शिक्षक आज विद्या दानी गुरु न रहकर मात्र वेतन भोगी-जीविका उपार्जक रह गए हैं। प्राचीन गुरू के गुणों से युक्त आदर्श शिक्षक आज कम ही मिलते हैं, पर नितांत कमी नहीं है। आज भी कुछ शिक्षक ऐसे हैं, जो निरंतर अपने आदर्शों का पालन करते हुए आकाश में असंख्य तारों के मध्य चंद्रवत शोभायमान हो रहे हैं।


मेरे विद्यालय के आदर्श शिक्षक (Ideal teacher of my school)

मैं कक्षा 12 का छात्र हूं और मेरी विद्यालय का नाम जवाहरलाल नेहरू इंटर कॉलेज जारी,इलाहाबाद है। इस विद्यालय में लगभग 80 शिक्षक छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं, किंतु उनमें से कुछ शिक्षकों को आदर्श शिक्षक की श्रेणी में गिना जा सकता है। इनमें मुझे हिंदी विषय पढ़ाने वाले शिक्षक हैं। जो बड़े सौम्य स्वभाव के व्यक्ति हैं। वे सदैव खादी का कुर्ता पजामा पहनते हैं और सादा जीवन उच्चा विचार सिद्धांत की प्रत्यक्ष मूर्ति है। हिंदी और संस्कृत दोनों विषयों में इन्होंने एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त की है। कक्षा में धाराप्रवाह बोलते हुए जॉब पाठ पढ़ाते है, तब छात्र गंभीर हो जाते हैं। वह विषय को बड़ी ही सरल भाषा में है स्पष्ट करते हैं कि शुष्क निबंध भी छात्रों के लिए सरस बन जाते हैं।

शिक्षक के अतिरिक्त हुए छात्रों में व्यवहार और आचरण का भी उपदेश देते चलते हैं। यह बड़े मृदु स्वभाव के व्यक्ति हैं। छात्रों के साथ हुए पुत्रवत् व्यवहार करते हैं। मैंने उन्हें कभी नाराज होते हुए नहीं देखा। वे छात्रों के प्रश्नों का बड़े प्रेम से और सटीक उत्तर देते हैं। वे सदैव विद्यार्थी की भलाई की बात ही सोचते हैं।

यदि कोई विद्यार्थी उनके आवास पर विषय के संबंध में कठिनाई निवारण करने के लिए जाता है, तो बड़े प्रेम से उसकी कठिनाई को दूर करते हैं।


विद्यार्थी में उनका सम्मान (His respect among the students)

सभी छात्र भी उनका हृदय से सम्मान करते हैं और बड़े ही श्रद्धा के साथ उन्हें गुरुजी कहते हैं। अनेक छात्र दो नित्य उनका चरण स्पर्श करते हैं। वे सच्चे अर्थों में आदर्श अध्यापक हैं। यदि सभी अध्यापक ऐसे हो जाएं, तो शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार स्वत: ही समाप्त हो जाएगा।


उपसंहार ( Epilogue )

मेरा जीवन धन्य है, जो मुझे इस तरह के अध्यापक के कक्षा में पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वस्तु तो आज भी शिक्षक यदि चाहे तो सच्चे अर्थों में जीवन निर्माता और राष्ट्र निर्माता का गौरव प्राप्त कर सकता है। अध्यापक ही देश की नौका के भावी कर्णधारो का निर्माता होता है। भारत में इसकी भूमिका के लिए उसे सदा से ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त रहा है। कबीर तो उसकी महिमा का वर्णन करते हुए कभी थकते नहीं-

      कबीर ते नर अंध है,

     गुरु को कहते हैं और।

      हरि रूठे गुरु ठौर है,

      गुरु रूठे नहीं ठौर।।

शिक्षक का सम्मान करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। शिक्षक के प्रयास से ही छात्र के व्यक्तित्व का विकास होता है। यदि शिक्षक को विद्यार्थी के विकास की आधारशिला कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।



मुझे आशा है कि आप लोगों को यह निबंध बहुत ही पसंद आया होगा।




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