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आदर्श शिक्षक पर निबंध, मेरा प्रिय शिक्षक पर निबंध, राष्ट्रीय निर्माण में शिक्षक की भूमिका,Essay on ideal teacher,Essay on my dear teacher,

दोस्तों आदर्श शिक्षा, मेरा प्रिय शिक्षक और राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध लिखना जानते हैं। इन सभी Topic पर आपको आज हम एक निबंध लिखना सिखाएंगे। यदि यह निबंध आपको पसंद आता है तो इस निबंध के अपने दोस्तों में भी शेयर जरूर कीजिएगा। जिससे वे लोग भी एक अच्छा निबंध लिखना सीख जाएंगे।


सबसे पहले बात करें,तो एक सुंदर सा निबंध लिखने में, हमें निम्नलिखित heading को ध्यान देना चाहिए और इसी तरह आपको भी निबंध लिखना चाहिए।



1. प्रस्तावना-गुरु का महत्व

2. वर्तमान युग की शिक्षा प्रणाली और शिक्षक

3. मेरे विद्यालय के आदर्श शिक्षक

4. उनके गुण

5. विद्यार्थी में उनका सम्मान

6. उपसंहार


आदि टॉपिको के मदद से हम लोग आदर्श शिक्षक पर निबंध लिखना सीखेंगे।



            निबंध-लेखन


प्रस्तावना ( Preface )

गुरु को ईश्वर से भी अधिक और प्रथम पूज्य माना गया है क्योंकि वही तो प्रभु दर्शन का ज्ञान कराता है। निश्चय ही मानव जीवन के निर्माण में गुरु अथवा शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। व्यक्ति के जीवन का निर्माण करने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका उसी तरह होती है जिस तरह कुम्हार को एक मिट्टी के बर्तन बनाने में होती है। अर्थात जिस प्रकार व अंदर से हाथ का सहारा देकर तथा बाहर से पीट-पीटकर घड़ी को सुंदर और सुडौल रूप प्रदान करता है, उसी प्रकार शिक्षक व विद्यार्थी के समस्त दुर्गुणों को दूर कर उसी जीवन में सफलता प्रदान करने के लिए ज्ञान प्रदान करता है। इसी संदर्भ में कबीर दास जी ने एक अच्छी बात कही है-

   गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है,

   गढ़ि-गढ़ि काढ़ खोट।

   अंतर हाथ सहार दै,

     बाहर मारे चोट।।


वर्तमान युग की शिक्षा- प्रणाली और शिक्षा ( Present day education system and teachers )

आज न वह गुरुकुल है जहां विद्यार्थी पूर्णत: गुरु के आश्रम में निवास करता हुआ विद्या अर्जन किया करता था और न वें गुरु ही है। आज की शिक्षा प्रणाली में शिक्षक एक वेतन भोगी कर्मचारी है और शिक्षार्थी शुल्क प्रदाता। अर्थात हमारी शिक्षा प्रणाली पैसों पर बिकती है। परंतु आज भी विद्यार्थी का भविष्य शिक्षक के ऊपर ही निर्भर है। वह विद्यार्थी को सद्गुणों,सदविचारों के साथ साथ जीवन उपयोगी शिक्षा प्रदान करता है। आज की इस भौतिक अर्थ प्रधान युग में जीवन के सभी क्षेत्रों में जिस प्रकार जीवन मूल्यों और मान्यताओं में गिरावट आई है, उसी प्रकार शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी में गिरावट आई है। शिक्षक आज विद्या दानी गुरु न रहकर मात्र वेतन भोगी-जीविका उपार्जक रह गए हैं। प्राचीन गुरू के गुणों से युक्त आदर्श शिक्षक आज कम ही मिलते हैं, पर नितांत कमी नहीं है। आज भी कुछ शिक्षक ऐसे हैं, जो निरंतर अपने आदर्शों का पालन करते हुए आकाश में असंख्य तारों के मध्य चंद्रवत शोभायमान हो रहे हैं।


मेरे विद्यालय के आदर्श शिक्षक (Ideal teacher of my school)

मैं कक्षा 12 का छात्र हूं और मेरी विद्यालय का नाम जवाहरलाल नेहरू इंटर कॉलेज जारी,इलाहाबाद है। इस विद्यालय में लगभग 80 शिक्षक छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं, किंतु उनमें से कुछ शिक्षकों को आदर्श शिक्षक की श्रेणी में गिना जा सकता है। इनमें मुझे हिंदी विषय पढ़ाने वाले शिक्षक हैं। जो बड़े सौम्य स्वभाव के व्यक्ति हैं। वे सदैव खादी का कुर्ता पजामा पहनते हैं और सादा जीवन उच्चा विचार सिद्धांत की प्रत्यक्ष मूर्ति है। हिंदी और संस्कृत दोनों विषयों में इन्होंने एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त की है। कक्षा में धाराप्रवाह बोलते हुए जॉब पाठ पढ़ाते है, तब छात्र गंभीर हो जाते हैं। वह विषय को बड़ी ही सरल भाषा में है स्पष्ट करते हैं कि शुष्क निबंध भी छात्रों के लिए सरस बन जाते हैं।

शिक्षक के अतिरिक्त हुए छात्रों में व्यवहार और आचरण का भी उपदेश देते चलते हैं। यह बड़े मृदु स्वभाव के व्यक्ति हैं। छात्रों के साथ हुए पुत्रवत् व्यवहार करते हैं। मैंने उन्हें कभी नाराज होते हुए नहीं देखा। वे छात्रों के प्रश्नों का बड़े प्रेम से और सटीक उत्तर देते हैं। वे सदैव विद्यार्थी की भलाई की बात ही सोचते हैं।

यदि कोई विद्यार्थी उनके आवास पर विषय के संबंध में कठिनाई निवारण करने के लिए जाता है, तो बड़े प्रेम से उसकी कठिनाई को दूर करते हैं।


विद्यार्थी में उनका सम्मान (His respect among the students)

सभी छात्र भी उनका हृदय से सम्मान करते हैं और बड़े ही श्रद्धा के साथ उन्हें गुरुजी कहते हैं। अनेक छात्र दो नित्य उनका चरण स्पर्श करते हैं। वे सच्चे अर्थों में आदर्श अध्यापक हैं। यदि सभी अध्यापक ऐसे हो जाएं, तो शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक भ्रष्टाचार स्वत: ही समाप्त हो जाएगा।


उपसंहार ( Epilogue )

मेरा जीवन धन्य है, जो मुझे इस तरह के अध्यापक के कक्षा में पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वस्तु तो आज भी शिक्षक यदि चाहे तो सच्चे अर्थों में जीवन निर्माता और राष्ट्र निर्माता का गौरव प्राप्त कर सकता है। अध्यापक ही देश की नौका के भावी कर्णधारो का निर्माता होता है। भारत में इसकी भूमिका के लिए उसे सदा से ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त रहा है। कबीर तो उसकी महिमा का वर्णन करते हुए कभी थकते नहीं-

      कबीर ते नर अंध है,

     गुरु को कहते हैं और।

      हरि रूठे गुरु ठौर है,

      गुरु रूठे नहीं ठौर।।

शिक्षक का सम्मान करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। शिक्षक के प्रयास से ही छात्र के व्यक्तित्व का विकास होता है। यदि शिक्षक को विद्यार्थी के विकास की आधारशिला कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।



मुझे आशा है कि आप लोगों को यह निबंध बहुत ही पसंद आया होगा।




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Chhatra Jeevan mein anushasan ka mahatva nibandh in Hindi, छात्र जीवन में अनुशासन का महत्व, छात्र और अनुशासन पर निबंध, जीवन में अनुशासन का महत्व, समय नियोजन और विद्यार्थी जीवन पर निबंध

 दोस्तों क्या आप छात्र जीवन में अनुशासन का महत्व या छात्र और अनुशासन या जीवन में अनुशासन का महत्व पर निबंध लिखना जानते हैं। आपका जवाब YES/NO होगा। जिनका जवाब YES है वे लोग भी आज के इस निबंध को जरूर देखेंगे जिससे कि यह पता चल सके कि निबंध में वे लोग कहां पर कैसे त्रुटिया कर रहे हैं।



जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हम लोग बचपन में निबंध लिखना उतना अच्छी तरह से नहीं जानते थे। जिसके कारण हम लोग किसी भी topic ( छात्र जीवन में अनुशासन का महत्व ) पर बिना Heading का निबंध लिखना Start कर देते थे।लेकिन आप लोग अब बड़े हो गए हैं तो आपको एक अच्छा निबंध लिखना आना चाहिए। और अच्छी निबंध Heading के बिना नहीं लिखा जा सकता है।


आज हम जो निबंध लिखने वाले उसकी Heading निम्न प्रकार है-

1. प्रस्तावना

2. अनुशासन से तात्पर्य

3. अनुशासन का महत्व

4. विद्यालयों में अनुशासनहीनता और उसके कारण

5. अनुशासनहीनता के निराकरण का प्रयास

6. उपसंहार

इन सभी heading के प्रयोग से आज हम निबंध लिखना सिखेंगें-


             निबंध-लेखन

प्रस्तावना- विद्या का विनाश अत्यंत ही घनिष्ट संबंध है।“विद्या ददाति विनयं” के आधार पर विद्या से ही विनय का प्रादुर्भाव होता है, किंतु आज देश का दुर्भाग्य है कि विद्या मंदिरों में जहां विनय शीलता का समराज होना चाहिए, वहां घोर अनुशासनहीनता अपना दानवीर दामन पसारे क्रूरता भरा अट्टहास कर रहा है। ना अध्यापकों में गुरु की गरिमा है और ना छात्रों में शिष्य का शील स्वभाव।


अनुशासन से तात्पर्य-‘अनुशासन’ शब्द ‘शास्’ धातु से बना है, जिसका तात्पर्य ‘शासन’ अथवा ‘नियंत्रण’ करना होता है। विश्व के सारे कार्य कलाप चाहे वे जड़ से संबंध हो अथवा चेतन से एक निश्चित नियम से आबद्ध होते हैं। पृथ्वी,सूर्य चंद्रमा नियम अनुसार नित्य एवं निश्चित गति में चक्कर लगाते रहते हैं। एक निश्चित अवधि पर ऋतु में परिवर्तन होता रहता है ‌ यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से इनका नियंत्रणकर्ता दिखाई नहीं पड़ता, किंतु ब्रह्मांड का कण-कण अनुशासन से अवध होता है। मनुष्य सामाजिक और वैज्ञानिक नियमों से नियंत्रित होता है, तो ऋतुएं एक काल से नियंत्रित होती हैं। यदि यह नियंत्रण टूट जाए, तो विश्व में बर्बरता व्याप्त हो जाएगा और संसार प्रलय की कगार पर लड़खड़ाते दिखाई देने लगेगा। अनुशासन के नियंत्रण से जीवन सुखी और शांत होता है। बिना अंकुश का हाथी, बिना लगाम का घोड़ा जिस प्रकार भयंकर और विनाशकारी होता है, ठीक उसी प्रकार अनुशासन रहित समाज अत्यंत ही विनाशकारी होता है। अनुशासन जीवन को गति देता है, उसे सुरक्षित रखता है और जीवन के उद्देश्य को सार्थक बनाता है। अनुशासन से व्यक्ति में शक्ति और आत्मविश्वास की भावना का उदय होता है। उसका मनोबल ऊंचा होता है।


अनुशासन का महत्व



मानव जीवन में अनुशासन का बहुत बड़ा महत्व है। अनुशासन से तात्पर्य मुख्यता आत्मानुशासन से ही है। नियंत्रण तो भय और दबाव से भी किया जा सकता है, किंतु उसका प्रभाव अस्थाई होता है। भाई और दबाव समाप्त हो जाने के बाद पुनः लोग पूर्व स्थिति में आ जाते हैं, जो अपने लिए, समाज के लिए और सारे विश्व के लिए अत्यंत ही घातक होते हैं। अनुशासन अपने सच्चे अर्थों में ही सार्थक होगा, जो स्वेच्छा से ग्राह्य किया गया हो। जीवन की कार्य क्षेत्र में हमारे लिए अनेक कल्याणकारी नियम बनाए गए। उनका पालन करना हमारे कर्तव्य के अंदर आता है। उन नियमों का पालन कानून या डंडे के बल पर सदैव नहीं कराया जा सकता। व्यक्ति को स्वयं अपने को उन नियमों के अंतर्गत नियंत्रित करना होगा। यदि समाज के सभी प्राणी पूर्णता नियंत्रित और अनुशासित हो जाए तो सर्वत्र सुख और शांति का साम्राज्य व्याप्त हो जाएगा। धरती पर स्वर्ग उतर आएगा। अनुशासन सभी सुखों की जड़ है। वह कठोरता का ऐसा पाषाण खंड है, जिसके नीचे आनंद का मधुर जलस्रोत छिपा हुआ है।


विद्यालयों में अनुशासनहीनता और उसके कारण-यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि विद्यालयों में, जहां हमारे राष्ट्र के भावी निर्माता गढे जा रहे हैं, अनुशासनहीनता अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है। सरस्वती के पावन मंदिर में अनुशासनहीनता के कारण दानवीर बर्बरताओ का ही राज्य है। छात्र अपने कर्तव्य को भूल गया है और अपने अधिकार की जोरदार मांग कर रहा है। विद्यालयों में शांतिपूर्ण शैक्षणिक वातावरण बनाने के लिए आज गंभीरतापूर्वक चिंतन-मनन की आवश्यकता महसूस हो रही है। मोटे तौर पर विचार किया जाए तो विद्यालयों में प्राप्त इस अनुशासनहीनता के पीछे निम्नलिखित कारण काम कर रहे हैं-

(क) अभिभावकों द्वारा बालकों की उपेक्षा-आज का अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय की चारदीवारी के भीतर बंद करा कर अपने उत्तरदायित्व से मुक्ति पा लेता है। परिणाम यह होता है कि बालक विद्यालय के घेरे से बाहर आते ही उन्मुक्त वातावरण में अपने को स्वच्छन्द पाता है और अनुशासन हीन हो जाता है।

(ख) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली-मैकाले की शिक्षा प्रणाली आज भी बिना किसी परिवर्तन के स्वतंत्र भारत में भी ज्यों की त्यों व्यवहार में लाई जा रही है। येन-केन-प्रकारेण छात्र किसी भी प्रकार का उत्तरण होकर प्रमाण पत्र पाने के लिए एड़ी चोटी का पसीना एक करता है। भले ही उसमें योग्यता कुछ ना हो किंतु प्रमाण पत्र प्राप्त करके वह अपनी रोजी-रोटी पा सकता है। अतः इसके लिए बेकारी और बेरोजगारी की इस युग में वह नकल करता है, रुकने पर झगड़े के लिए उतारू होता है, सूर्य और तमंचे निकालता है, इस प्रकार दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के कारण भी छात्रों में अनुशासनहीनता अंकुरित होती है।

(ग) राजनीतिक दलों का प्रोत्साहन-अपरिपक्व बुद्धि वाले छात्रों को अनुशासन हिंद बनाने में राजनीतिक दलों का पूरा-पूरा हाथ है। यह छात्रों की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के प्रशिक्षण के नाम पर विद्यालयों में छात्र संघ की स्थापना कराते हैं और उन्हीं की आड़ में अपना राजनीतिक रोटी सेंकने है। छात्र इतने भावुक और संवेदनशील होते हैं कि आवेश में आकर बड़े से बड़े अनर्थ कर देने पर भी इन्हें कोई हिचक नहीं होता।

(घ) अध्यापकों के प्रति श्रद्धा का अभाव-आज का छात्र अध्यापक को अपना गुरु नहीं सेवक मानता है। गुरु के प्रति जो श्रद्धा होनी चाहिए, वह उसमें नहीं है। इसके पीछे प्रबंध समितियों की पारस्परिक कलह, विद्यालयों की बढ़ती हुई संख्या, समाज, दूषित वातावरण आदि अनेक कारण है। इसके साथ ही साथ अध्यापकों की दोषपूर्ण कार्य क्षमता भी इसमें कम सहायक नहीं है।

अनुशासनहीनता के निराकरण का प्रयास-विद्यालयों में व्याप्त इस घोर अनुशासनहीनता के निराकरण के लिए उपाय सोचना होगा। छात्रों में असंतोष को दूर करने के लिए उसके सभी अभाव को दूर करना होगा। भावी जीवन के प्रति उसे आशाश्वत करना होगा। छात्र संघों के वास्तविक उद्देश्य को समझाना होगा। इसके साथ ही साथ सरकार ने राजनीतिक दलों से पृथक रहने के लिए छात्रों पर कठोर कदम उठाए हैं। इस प्रकार छात्रों ने अपने कर्तव्य को समझें और बहुत आशा है कि विद्यालयों में अनुशासनहीनता की समस्या को सांसद तक समाप्त हो जाएगी।

उपसंहार-इसमें संदेह नहीं है कि छात्रों में असीम शक्ति भरी हुई है। मनुष्य ने झरनों और प्रपात ओके जल को अनुशासित करके असीम शक्ति एकत्रित करने में सफलता प्राप्त कर ली है। यदि छात्रों की इस असीम शक्ति को भी अनुशासित करके देश और समाज कल्याण के कार्यों में लगाया जाए तो निश्चय ही इससे राष्ट्रीय का बहुत बड़ा ही तो होगा।



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बहादुर कहानी की कथावस्तु, बहादुर कहानी, अमरकांत की बहादुर कहानी, UP Board solution Hindi class 12, बहादुर कहानी के नायक का चरित्र चित्रण

UP Board Solutions For Class 12 Samanaya Hindi कथा भारती, बहादुर

Up Board Solutions for Class 12 Samanaya Hindi कथा भारती, बहादुर(अमरकांत)

 दोस्तों आज हम आपके साथ 'अमरकांत द्वारा लिखित बहादुर कथा साहित्य' से संबंधित कुछ संक्षिप्त वाक्यांशों को साझा करने वाले हैं। जिसे up board परीक्षा में अक्सर हमेशा पूछा जाता है। अगर आपको यूपी बोर्ड के विद्यार्थी हैं तो आप लोगों जरूर देखे होंगें।


ध्यान दें : 

इस कहानी से संबंधित परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न-

1. कहानी के तत्वों के आधार पर 'बहादुर' कहानी की समीक्षा कीजिए

2. बहादुर कहानी की कथावस्तु लिखिए

3. 'बहादुर' कहानी के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए

4. कथा संगठन की दृष्टि से 'बहादुर' कहानी की समीक्षा कीजिए

5. अमरकांत की संकलित कहानी 'बहादुर' की समीक्षा कीजिए

7. 'बहादुर' कहानी का संक्षिप्त कथानक अपने शब्दों में लिखें

8. पात्र योजना की दृष्टि से बहादुर कहानी की समीक्षा कीजिए

9. अमरकांत की कहानी कला की विशेषताएं संक्षेप में लिखें


उपर्युक्त दिए गए सभी प्रश्नों का उत्तर निम्नलिखित दिया गया है


उत्तर- अमरकांत की बहादुर कहानी एक मध्यवर्गीय परिवार के जीवन की समस्या को लेकर चली है। इसमें एक बेसहारा पहाड़ी लड़की की मार्मिक कथा वर्णित है। कहानी के तत्वों के आधार पर कहानी की समीक्षा इस प्रकार की जा सकती है-

शीर्षक- कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, सारगर्भित तथा उपयुक्त है। यह इस कहानी के प्रमुख पात्र बहादुर के नाम पर आधारित है। इसे पढ़कर पाठक के मन में बहादुर के बारे में जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। यहां पर बहादुर वीरता का प्रतीक ना होकर पहाड़ी बालक का घरेलू नौकर का पर्याय मात्र है। इस प्रकार यह एक उपयुक्त शीर्षक है।


कथानक- यह कहानी का कथानक अति संक्षिप्त तथा कौतूहलपुर्ण यह 12 13 वर्ष के एक पहाड़ी बालक बहादुर की दयनीय दशा को प्रकट करने वाली कहानी है, जो मां की मार और उपेक्षा से खींझकर शहर भाग आया है। यहां वह निर्मला के यहां नौकरी करता है। वह मेहनत तथा ईमानदारी से कार्य करता है परंतु मालिक इन उस पर सदा अविश्वास करती है। उसे डांटती फटकारती है और अपनी ने रोटी स्वयं बनाने को कहते हैं बार-बार पीटने और धमाका जाने की वजह से बहादुर से भी त्रुटियां हो जाती है। एक दिन निर्मला के यहां कोई संबंधी आए, जिनकी ₹11 खो गए। संदेह में बहादुर को क्रूरता के साथ पिटा गया। बहादुर अपना सभी सामान छोड़कर भाग गया। तब निर्मला एवं उसके पति को अपनी गलती का एहसास हुआ और पश्चाताप भी। या कहानी की मूल घटना है।


पात्र तथा चरित्र-चित्रण-कहानी में पात्रों की संख्या सीमित है। इसमें केवल चार प्रमुख पात्र हैं-बहादुर, निर्मला उसका पति और पुत्र किशोर। ये सभी पात्र मध्यम वर्ग के प्रतिनिधि हैं। बहादुर इसका सर्व प्रमुख पात्र हैं। वाह 12 13 वर्ष का एक पहाड़ी बालक है जो अपनी मां की मारपीट से खींझकर शहर भाग आया है। इस के चरित्र को सहानुभूति पूर्वक से प्रस्तुत किया गया है। उसकी मानसिक दशा के परिवर्तन को बड़ी कुशलता से चित्रित किया गया है। वह निम्न दलित वर्ग का प्रतिनिधि है। कहानी के अन्य पात्र मध्यम वर्ग के प्रतिनिधि हैं। आर्थिक तंगी होते हुए भी यह वर्ग अपनी सफेद पोशी को बनाए रखता है। लेखक की सहानुभूति इस वर्ग के साथ भी है। लेखक ने इस वर्ग की आंतरिक,मानसिक स्थिति का अनुभूति पूर्ण ढंग से चित्रण किया है। इस प्रकार लेखक को पात्रों के चरित्र चित्रण में सफलता मिली है।

देश काल और वातावरण-कहानी की रचना देशकाल को ध्यान में रखकर हुई है। अतः इसमें वातावरण का प्रभावशाली रूप दिखाई पड़ता है। संपूर्ण घटना निर्मला के घर में घटित होती है। घर की निवासी और रिश्तेदारों के व्यवहार और वार्तालाप से उसके वातावरण में वास्तविकता का रूप हमारे सामने आ जाता है। घटना के अनुरूप ही समग्र वातावरण में सघनता तथा गंभीरता आ जाती है, जो कहानी के अंत में चरम बिंदु तक पहुंच जाती हैं। वातावरण की इसी असाधारण तथा कलापूर्ण चित्रण के कारण सारी कहानी एक वास्तविक घटना जैसी प्रतीत होती है।

भाषा शैली-कहानी में सामान्य लोगों की चलती हुई व्यवहारिक भाषा का प्रयोग किया गया है। कहानी की भाषा वक्रता तथा घूम आओ फिर आओ से सर्वथा दूर सरल तथा स्वभाविक है। इसमें उर्दू के प्रचलित शब्द (बर्दाश्त, शराफत, तमीज, शायद, अफसोस आदि), दूसरे शब्दों तथा मुहावरे का भी यथा स्थान प्रयोग करके उपयुक्त वातावरण की सृष्टि की गई है।

उद्देश्य-कहानी निम्न मध्यवर्गीय समाज के मनोविज्ञान का वास्तविक चित्र अंकित करती है। आधुनिक समाज झूठे प्रदर्शन और शासन शौकत में विश्वास करता है। वह बनावटी जिंदगी जीना पसंद करता है। कहानीकार ने निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति रखते हुए मध्यम वर्ग के लोगों की स्थिति की वास्तविकता को समझा है। उसमें बार के भेद मिटाने को प्रोत्साहन दिया है। कहानीकार का संदेश है कि मानवीय सहानुभूति हुई वर्ग भेद मिटा सकती है।


प्रश्न- बहादुर कहानी के मुख्य पात्र दिल बहादुर का चरित्र चित्रण कीजिए।

                 अथवा

 बहादुर कहानी के नायक का चरित्र चित्रण कीजिए।


उत्तर-बहादुर एक चरित्र प्रधान कहानी है। एक बेसहारा पहाड़ी बालक दिल बहादुर इसका नायक है। बहादुर के चरित्र की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार है-

असहाय और भोला-बहादुर बिहार प्रांत का रहने वाला है। माता के व्यवहार से पीड़ित होकर वह अपना घर छोड़ देता है। प्यार का व्यवहार पाकर निर्मला के परिवार का सारा कार्य संभाल लेता है।

परिश्रमी और इमानदार-बहादुर सुबह 8:00 बजे से लेकर रात्रि तक कार्य करता है। मारपीट के उपरांत भी वह दिल लगाकर कार्य करता है। चोरी नहीं करता बल्कि झूठे इल्जाम पर मार भी खाता है।

प्रेम का भूखा- वह मातृत्व प्रेम, स्नेह के व्यवहार का भूखा है, जो उसे अपने घर में नहीं मिलता। वह प्रेम शुरू में निर्मला के परिवार से मिलता है, मगर जब वह भी अच्छा व्यवहार नहीं करती तब हुआ घर छोड़ देता है।

सहनशील और स्वाभिमान-बहादुर सहिष्णु है। घर में उसे सभी डांटते हैं, लेकिन वह सब कुछ सहन कर लेता है, यहां तक कि उसे निर्मला, निर्मला का पति और किशोर सब बुरी तरह पीटते हैं। पीटाई को भी वह सहन करता है। गालियों की बौछार ए होती हैं,उनका भी वह विरोध नहीं करता, लेकिन जब किशोर उसके बाप को गाली देता है तो उसका स्वाभिमान जाग उठता है। वह उसका काम करने से इंकार कर देता है।

व्यवहार-कुशल-बहादुर एक व्यवहार कुशल बालक है। अपने इसी गुण के कारण थोड़े से समय में ही वह घर के सभी सदस्यों पर जादू का पुरा प्रभाव डाल देता है। घर के हर सदस्य के प्रति उसका बड़ा ही मृदु व्यवहार है। मोहल्ले के बच्चों को भी वह अपने गाने सुना कर मोहित कर लेता है।



मुझे आशा है कि आप लोगों को इन प्रश्नो के उत्तर से बहुत ही सहायता मिली होगी।


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हिंदी गध साहित्य का इतिहास, UP Board samanya Hindi class 12, class 12 samanya Hindi question answer UP Board, परीक्षा उपयोगी बहुविकल्पीय प्रश्न हिंदी

दोस्तों आज हम Important question of hindi for board exam कि कुछ बहुविकल्पीय प्रश्नों को देखने वाले हैं।जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हिंदी गद्य सहित्य का इतिहास पर आधारित प्रश्न Board Exam में एक या दो या इससे अधिक पूछे जाते हैं।


इस हिंदी साहित्य की इतिहास से board परीक्षा में हमेशा प्रश्न पूछा जाता है और यह प्रश्न आपके नंबर को बढ़ानेेेेे में मददगार साबित होते हैं। इसलिए इन प्रश्नों के बारे में जानकारी लेना बहुत ही जरूरी है।

[ NOTE: लाल रंग से लिखा गया शब्द ही सही है ]

    बहुविकल्पीय प्रश्न उत्तर    

निम्नलिखित प्रश्नों में से सही विकल्प का चयन करें-

1. 'भाषा योग वशिष्ठ' के लेखक हैं-

(क) मुंशी सदासुख लाल   (ख) सदल मिश्र

(ग) रामप्रसाद निरंजनी     (घ) मुंशी इंशा अल्ला खां

उत्तर- (ग) रामप्रसाद निरंजनी


2. 'राय कृष्णदास'गद्य साहित्य के किस युग के लेखक हैं?

(क) भारतेंदु युग     (ख) द्विवेदी युग

(ग) छायावादी युग  (घ) छायावादोत्तर युग

उत्तर-(ग) छायावादी युग


3. 'तरंगिणी' की रचना विधा है-

(क) नाटक       (ख) उपन्यास

(ग) गद्य काव्य   (घ) संस्मरण

उत्तर- (ग) गद्य काव्य


4. 'अष्टयाम' के रचयिता है

(क) गोकुलनाथ    (ख) वल्लभाचार्य

(ग) नाभादास       (घ) तुलसीदास

उत्तर-(ग) नाभादास


5. 'पथ के साथी' की रचना विधा है-

(क) कहानी       (ख) जीवनी

(ग) आत्मकथा   (घ) संस्मरण

उत्तर-(घ) संस्मरण


6. रिपोर्ताज लिखने का प्रचलन किस युग में हुआ?

(क) द्विवेदी युग           (ख) छायावादी युग

(ग) छायावादोत्तर युग   (घ) भारतेंदु युग

उत्तर- (ग) छायावादोत्तर युग


7. 'छायावादी युग' के लेखक कौन नहीं है?

(क) वियोगी हरि         (ख) भगवती चरण वर्मा

(ग) नंददुलारे वाजपेई   (घ) डॉ रघुवीर सिंह

उत्तर-(ख) भगवतीचरण वर्मा


8. 'साहित्यालोचन' गद्य की विधा है-

(क) नाटक        (ख) उपन्यास

(ग) आलोचना    (घ) निबंध

उत्तर-(ग) आलोचना


9. हरिश्चंद्र को 'भारतेंदु' की पदवी से सुशोभित किया गया-

(क) सन् 1860 में   (ख) सन् 1865 में

(ग) सन् 1875 में    (घ) सन् 1880 में

उत्तर- (घ) सन् 1880 में


10. 'शिक्षा का उद्देश्य'निबंध संपूर्णानंद जी द्वारा लिखित किस निबंध संग्रह से संकलित है?

(क) भाषा की शक्ति       (ख) शिक्षा की दिशा और दशा

(ग) शिक्षा और संस्कृति   (घ) शिक्षा और समाज

उत्तर-(क) भाषा की शक्ति


11. 'अशोक के फूल' निबंध है-

(क) मनोवैज्ञानिक निबंध    (ख) ललित निबंध

(ग) बुद्धि प्रधान निबंध       (घ) ऐतिहासिक निबंध

उत्तर- (ख) ललित निबंध


12. 'हरखू' पात्र किस कार्य से संबंधित है?

(क) बलिदान      (ख) आकाशदीप

(ग) प्रायश्चित       (घ) समय

उत्तर-(क) बलिदान


13. श्रृंगार रस मंडन के रचनाकार हैं-

(क) भारतेंदु हरिश्चंद्र     (ख) महादेवी वर्मा

(ग) गोसाईं विट्ठलनाथ   (घ) राधाचरण गोस्वामी

उत्तर-(ग) गोसाईं विट्ठलनाथ


14. प्रेमसागर के रचयिता हैं-

(क) सदल मिश्र              (ख) सूरदास

(ग) रामप्रसाद निरंजनी    (घ) लल्लू लाल

उत्तर-(घ) लल्लू लाल


15. निम्नलिखित में से कौन उपन्यास नहीं है?

(क) बाल भट्ट की आत्मकथा  (ख) मैला आंचल

(ग) शेखर एक जीवनी           (घ) संस्कृति के चार अध्याय

उत्तर-(घ)संस्कृत के चार अध्याय


16. आर्यों का आदि देश के लेखक कौन हैं?

(क) आचार्य रामचंद्र शुक्ल   (ख) संपूर्णानंद

(ग) गणेश शंकर विद्यार्थी     (घ) जैनेंद्र कुमार

उत्तर-(ख) संपूर्णानंद


17. घुमक्कड़ शास्त्र के रचयिता कौन है?

(क) राहुल सांकृत्यायन  (ख) डॉ विद्यानिवास मिश्र

(ग) डॉ नगेंद्र                (घ) वृंदावन लाल वर्मा

उत्तर-(क) राहुल सांकृत्यायन


18. डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास इनमें से कौन है?

(क) सुखदा          (ख) अनामदास का पोथा

(ग) गोदान            (घ) अपने अपने अजनबी

उत्तर-(ख) अनामदास का पोथा


19. भारत दुर्दशा के रचयिता कौन हैं?

(क) श्यामसुंदर दास             (ख) भारतेंदु हरिश्चंद्र

(ग) पं. प्रतापनारायण मिश्र    (घ) चंद्रधर शर्मा गुलेरी

उत्तर-(ख) भारतेंदु हरिश्चंद्र


20. कलम का सिपाही हिंदी गद्य की कौन सी विधा अंतर्गत आता है?

(क) कहानी          (ख) जीवनी

(ग) उपन्यास         (घ) रेखा चित्र

उत्तर-(ख) जीवनी


21. कवि वचन सुधा के संपादक थे-

(क) बालकृष्ण भट्ट      (ख) बालमुकुंद गुप्त

(ग) भारतेंदु हरिश्चंद्र     (घ) प्रताप नारायण मिश्र

उत्तर-(ग) भारतेंदु हरिश्चंद्र


22. निम्नलिखित में से कौन सा साहित्यकार छायावादी नहीं है-

(क) जयशंकर प्रसाद      (ख) रामधारी सिंह दिनकर

(ग) सुमित्रानंदन पंत       (घ) महादेवी वर्मा

उत्तर-(ख) रामधारी सिंह दिनकर


23. हिंदी गद्य साहित्य के जनक माने जाते हैं-

(क) आचार्य रामचंद्र शुक्ल    (ख) पं. लल्लू लाल

(ग) भारतेंदु हरिश्चंद्र              (घ) इंशा अल्ला खां

उत्तर-(ग) भारतेंदु हरिश्चंद्र


24. हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास कौन सा है?

(क) भाग्यवती       (ख) परीक्षा गुरु

(ग) कंकाल            (घ) पुनर्नवा

उत्तर-(ख) परीक्षा गुरु


25. हजारी प्रसाद द्विवेदी का लेखन युग है-

(क) भारतेंदु युग         (ख) द्विवेदी युग

(ग) छायावादी युग      (घ) छायावादोत्तर युग

उत्तर-(घ) छायावादोत्तर युग


26. 'अज्ञेय' का पूरा नाम क्या है

(क) अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

(ख) भारतेंदु हरिश्चंद्र

(ग) सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन

(घ) मैथिलीशरण गुप्त

उत्तर-(ग) सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन


27. मुंशी प्रेमचंद का जन्म काल है-

(क) 1870 ई.      (ख) 1875 ई.

(ग) 1880 ई.       (घ) 1879 ई.

उत्तर-(ग) 1880 ई.


28. निम्न में से कौन भारतेंदु युग के लेखक नहीं है?

(क) बालकृष्ण भट्ट

(ख) प्रताप नारायण मिश्र

(ग) राधाचरण गोस्वामी

(घ) बालमुकुंद गुप्त

उत्तर-(घ) बालमुकुंद


29. निम्न में से कौन हिंदी का साहित्येतिहासकार है?

(क) रामधारी सिंह दिनकर

(ख) मैथिलीशरण गुप्त

(ग) रामचंद्र शुक्ल

(घ) जयशंकर प्रसाद

उत्तर-(ग) रामचंद्र शुक्ल


30. गद्य विधा जो नहीं है-

(क) निबंध      (ख) आलोचना

(ग) उपन्यास    (घ) गद्य काव्य

उत्तर-(घ) गद्य काव्य


31. हिंदी गद्य और पद्य विधाओं के समान रूप से विद्वान है-

(क) मैथिलीशरण गुप्त   (ख) विष्णु प्रभाकर

(ग) जयशंकर प्रसाद      (घ) वासुदेव शरण अग्रवाल

उत्तर-(ग) जयशंकर प्रसाद


32. मेरी जीवन यात्रा की रचना विधा है

(क) संस्मरण      (ख) जीवनी

(ग) आत्मकथा    (घ) रेखा चित्र

उत्तर-(ग) आत्मकथा


33. सच्ची वीरता नामक निबंध के लेखक हैं

(क) वासुदेव शरण अग्रवाल    (ख) कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

(ग) राय कृष्णदास                 (घ) सरदारपुर सिंह

उत्तर-(घ) सरदार पूर्ण सिंह


34. निम्नलिखित में से कौन निबंध व्यंग्य का अच्छा उदाहरण है

(क) गेहूं बनाम गुलाब     (ख) आखिरी चट्टान

(ग) निंदा रस                 (घ) अशोक के फूल

उत्तर-(ग) निंदा रस


35. वोल्गा से गंगा गद्य विधा की दृष्टि से है

(क) उपन्यास       (ख) कहानी संग्रह

(ग) आत्मकथा      (घ) निबंध संग्रह

उत्तर-(ख) कहानी संग्रह


36. हरिशंकर परसाई का निबंध संग्रह है

(क) आलोक पर्व              (ख) त्रिशंकु

(ग) पगडंडियों का जमाना   (घ) परिवेश

उत्तर-(ग) पगडंडियों का जमाना


37. 'हिंदी साहित्य के हजारों वर्षों में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ' यह कथन है

(क) रामचंद्र शुक्ल का 

(ख) डॉक्टर राजकुमार वर्मा का

(ग) डॉ नगेंद्र का

(घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी का

उत्तर-(घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी का


38. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म काल है

(क) 1846 ई.      (ख) 1857 ई.

(ग) 1864 ई.       (घ) 1875 ई.

उत्तर-(ग) 1864 ई.


39. हंस पत्रिका के संपादक थे

(क) वासुदेव शरण अग्रवाल

(ख) सरदार पूर्ण सिंह

(ग) कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर

(घ) प्रेमचंद

उत्तर-(घ) प्रेमचंद


40. विशाल भारत के संपादक हैं

(क) प्रेमचंद

(ख) बनारसीदास चतुर्वेदी

(ग) धर्मवीर भारती

(घ) प्रताप नारायण मिश्र

उत्तर-(ख) बनारसीदास चतुर्वेदी


41. पथ के साथी के रचयिता हैं

(क) श्यामसुंदर दास

(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी

(ग) महादेवी वर्मा

(घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी

उत्तर-(ग) महादेवी वर्मा


42. पंचलाइट की रचना विधा है

(क) निबंध       (ख) संस्मरण

(ग) कहानी       (घ) आत्मकथा

उत्तर-(ग) कहानी


43. अज्ञेय का जन्म काल है

(क) 1892 ई.   (ख) 1907 ई.

(ग) 1911 ई.     (घ) 1920 ई.

उत्तर-(ग) 1911 ई.


44. वैदिक हिंसा हिंसा न भवति के रचयिता हैं

(क) जयशंकर प्रसाद

(ख) भारतेंदु हरिश्चंद्र

(ग) मुंशी सदा सुख लाल

(घ) श्यामसुंदर दास

उत्तर-(ख) भारतेंदु हरिश्चंद्र


45. हरिऔध का पूरा नाम क्या है

(क) मैथिलीशरण गुप्त

(ख) भारतेंदु हरिश्चंद्र

(ग) अयोध्या सिंह उपाध्याय

(घ) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन

उत्तर-(ग) अयोध्या सिंह उपाध्याय


46. आनंद कादंबिनी के संपादक हैं

(क) बालकृष्ण भट्ट

(ख) बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन

(ग) लल्लू लाल

 (घ) रामचंद्र शुक्ल

उत्तर-(ख) बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन


47. श्यामसुंदर दास का जन्म कौन है

(क) सन् 1875    (ख) सन् 1884

(ग) सन् 1892      (घ) सन् 1907

उत्तर-(क) सन 1875


48. डॉ संपूर्णानंद का जन्म काल है

(क) 1884 ई.     (ख) 1890 ई.

(ग) 1902 ई.       (घ) 1905 ई.

उत्तर-(ख) 1890 ई.


49. सरस्वती पत्रिका के संपादक हैं

(क) डॉक्टर संपूर्णानंद

(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी

(ग) वासुदेव शरण अग्रवाल

(घ) रामचंद्र शुक्ला

उत्तर-(ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी


50. रामवृक्ष बेनीपुरी का लेखन युग है

(क) भारतेंदु युग

(ख) द्विवेदी युग

(ग) छायावाद युग 

(घ) छायावादोत्तर युग

उत्तर-(घ) छायावादोत्तर युग


51. मोहन राकेश का जन्म काल है

(क) 1907 ई.    (ख) 1911 ई.

(ग) 1908 ई.      (घ) 1925 ई.

उत्तर-(घ) 1925 ई.


52. आवारा मसीहा की रचना विधा है

(क) संस्मरण      (ख) जीवनी

(ग) रेखा चित्र      (घ) आत्मकथा

उत्तर-(ख) जीवनी


53. सरदार पूर्ण सिंह का लेखन युग है

(क) भारतेंदु युग    (ख) द्विवेदी युग

(ग) छायावादी युग  (घ) छायावादोत्तर युग

उत्तर-(ख) द्विवेदी युग


54. नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की है

(क) रामचंद्र शुक्ल ने

(ख) बालमुकुंद गुप्त ने

(ग) श्यामसुंदर दास ने

(घ) मिश्र बंधु ने

उत्तर-(ग) श्यामसुंदर दास ने


हमें आशा है कि इस पोस्ट से आपको कुछ सहायता जरूर मिला होगा। अगर आपको लगता है कि किसी प्रश्न का उत्तर गलत है तो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं।




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