दोस्तों क्या आप छात्र जीवन में अनुशासन का महत्व या छात्र और अनुशासन या जीवन में अनुशासन का महत्व पर निबंध लिखना जानते हैं। आपका जवाब YES/NO होगा। जिनका जवाब YES है वे लोग भी आज के इस निबंध को जरूर देखेंगे जिससे कि यह पता चल सके कि निबंध में वे लोग कहां पर कैसे त्रुटिया कर रहे हैं।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हम लोग बचपन में निबंध लिखना उतना अच्छी तरह से नहीं जानते थे। जिसके कारण हम लोग किसी भी topic ( छात्र जीवन में अनुशासन का महत्व ) पर बिना Heading का निबंध लिखना Start कर देते थे।लेकिन आप लोग अब बड़े हो गए हैं तो आपको एक अच्छा निबंध लिखना आना चाहिए। और अच्छी निबंध Heading के बिना नहीं लिखा जा सकता है।
आज हम जो निबंध लिखने वाले उसकी Heading निम्न प्रकार है-
1. प्रस्तावना
2. अनुशासन से तात्पर्य
3. अनुशासन का महत्व
4. विद्यालयों में अनुशासनहीनता और उसके कारण
5. अनुशासनहीनता के निराकरण का प्रयास
6. उपसंहार
इन सभी heading के प्रयोग से आज हम निबंध लिखना सिखेंगें-
निबंध-लेखन
प्रस्तावना- विद्या का विनाश अत्यंत ही घनिष्ट संबंध है।“विद्या ददाति विनयं” के आधार पर विद्या से ही विनय का प्रादुर्भाव होता है, किंतु आज देश का दुर्भाग्य है कि विद्या मंदिरों में जहां विनय शीलता का समराज होना चाहिए, वहां घोर अनुशासनहीनता अपना दानवीर दामन पसारे क्रूरता भरा अट्टहास कर रहा है। ना अध्यापकों में गुरु की गरिमा है और ना छात्रों में शिष्य का शील स्वभाव।
अनुशासन से तात्पर्य-‘अनुशासन’ शब्द ‘शास्’ धातु से बना है, जिसका तात्पर्य ‘शासन’ अथवा ‘नियंत्रण’ करना होता है। विश्व के सारे कार्य कलाप चाहे वे जड़ से संबंध हो अथवा चेतन से एक निश्चित नियम से आबद्ध होते हैं। पृथ्वी,सूर्य चंद्रमा नियम अनुसार नित्य एवं निश्चित गति में चक्कर लगाते रहते हैं। एक निश्चित अवधि पर ऋतु में परिवर्तन होता रहता है यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से इनका नियंत्रणकर्ता दिखाई नहीं पड़ता, किंतु ब्रह्मांड का कण-कण अनुशासन से अवध होता है। मनुष्य सामाजिक और वैज्ञानिक नियमों से नियंत्रित होता है, तो ऋतुएं एक काल से नियंत्रित होती हैं। यदि यह नियंत्रण टूट जाए, तो विश्व में बर्बरता व्याप्त हो जाएगा और संसार प्रलय की कगार पर लड़खड़ाते दिखाई देने लगेगा। अनुशासन के नियंत्रण से जीवन सुखी और शांत होता है। बिना अंकुश का हाथी, बिना लगाम का घोड़ा जिस प्रकार भयंकर और विनाशकारी होता है, ठीक उसी प्रकार अनुशासन रहित समाज अत्यंत ही विनाशकारी होता है। अनुशासन जीवन को गति देता है, उसे सुरक्षित रखता है और जीवन के उद्देश्य को सार्थक बनाता है। अनुशासन से व्यक्ति में शक्ति और आत्मविश्वास की भावना का उदय होता है। उसका मनोबल ऊंचा होता है।
अनुशासन का महत्व
मानव जीवन में अनुशासन का बहुत बड़ा महत्व है। अनुशासन से तात्पर्य मुख्यता आत्मानुशासन से ही है। नियंत्रण तो भय और दबाव से भी किया जा सकता है, किंतु उसका प्रभाव अस्थाई होता है। भाई और दबाव समाप्त हो जाने के बाद पुनः लोग पूर्व स्थिति में आ जाते हैं, जो अपने लिए, समाज के लिए और सारे विश्व के लिए अत्यंत ही घातक होते हैं। अनुशासन अपने सच्चे अर्थों में ही सार्थक होगा, जो स्वेच्छा से ग्राह्य किया गया हो। जीवन की कार्य क्षेत्र में हमारे लिए अनेक कल्याणकारी नियम बनाए गए। उनका पालन करना हमारे कर्तव्य के अंदर आता है। उन नियमों का पालन कानून या डंडे के बल पर सदैव नहीं कराया जा सकता। व्यक्ति को स्वयं अपने को उन नियमों के अंतर्गत नियंत्रित करना होगा। यदि समाज के सभी प्राणी पूर्णता नियंत्रित और अनुशासित हो जाए तो सर्वत्र सुख और शांति का साम्राज्य व्याप्त हो जाएगा। धरती पर स्वर्ग उतर आएगा। अनुशासन सभी सुखों की जड़ है। वह कठोरता का ऐसा पाषाण खंड है, जिसके नीचे आनंद का मधुर जलस्रोत छिपा हुआ है।
विद्यालयों में अनुशासनहीनता और उसके कारण-यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि विद्यालयों में, जहां हमारे राष्ट्र के भावी निर्माता गढे जा रहे हैं, अनुशासनहीनता अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है। सरस्वती के पावन मंदिर में अनुशासनहीनता के कारण दानवीर बर्बरताओ का ही राज्य है। छात्र अपने कर्तव्य को भूल गया है और अपने अधिकार की जोरदार मांग कर रहा है। विद्यालयों में शांतिपूर्ण शैक्षणिक वातावरण बनाने के लिए आज गंभीरतापूर्वक चिंतन-मनन की आवश्यकता महसूस हो रही है। मोटे तौर पर विचार किया जाए तो विद्यालयों में प्राप्त इस अनुशासनहीनता के पीछे निम्नलिखित कारण काम कर रहे हैं-
(क) अभिभावकों द्वारा बालकों की उपेक्षा-आज का अभिभावक अपने बच्चों को विद्यालय की चारदीवारी के भीतर बंद करा कर अपने उत्तरदायित्व से मुक्ति पा लेता है। परिणाम यह होता है कि बालक विद्यालय के घेरे से बाहर आते ही उन्मुक्त वातावरण में अपने को स्वच्छन्द पाता है और अनुशासन हीन हो जाता है।
(ख) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली-मैकाले की शिक्षा प्रणाली आज भी बिना किसी परिवर्तन के स्वतंत्र भारत में भी ज्यों की त्यों व्यवहार में लाई जा रही है। येन-केन-प्रकारेण छात्र किसी भी प्रकार का उत्तरण होकर प्रमाण पत्र पाने के लिए एड़ी चोटी का पसीना एक करता है। भले ही उसमें योग्यता कुछ ना हो किंतु प्रमाण पत्र प्राप्त करके वह अपनी रोजी-रोटी पा सकता है। अतः इसके लिए बेकारी और बेरोजगारी की इस युग में वह नकल करता है, रुकने पर झगड़े के लिए उतारू होता है, सूर्य और तमंचे निकालता है, इस प्रकार दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के कारण भी छात्रों में अनुशासनहीनता अंकुरित होती है।
(ग) राजनीतिक दलों का प्रोत्साहन-अपरिपक्व बुद्धि वाले छात्रों को अनुशासन हिंद बनाने में राजनीतिक दलों का पूरा-पूरा हाथ है। यह छात्रों की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के प्रशिक्षण के नाम पर विद्यालयों में छात्र संघ की स्थापना कराते हैं और उन्हीं की आड़ में अपना राजनीतिक रोटी सेंकने है। छात्र इतने भावुक और संवेदनशील होते हैं कि आवेश में आकर बड़े से बड़े अनर्थ कर देने पर भी इन्हें कोई हिचक नहीं होता।
(घ) अध्यापकों के प्रति श्रद्धा का अभाव-आज का छात्र अध्यापक को अपना गुरु नहीं सेवक मानता है। गुरु के प्रति जो श्रद्धा होनी चाहिए, वह उसमें नहीं है। इसके पीछे प्रबंध समितियों की पारस्परिक कलह, विद्यालयों की बढ़ती हुई संख्या, समाज, दूषित वातावरण आदि अनेक कारण है। इसके साथ ही साथ अध्यापकों की दोषपूर्ण कार्य क्षमता भी इसमें कम सहायक नहीं है।
अनुशासनहीनता के निराकरण का प्रयास-विद्यालयों में व्याप्त इस घोर अनुशासनहीनता के निराकरण के लिए उपाय सोचना होगा। छात्रों में असंतोष को दूर करने के लिए उसके सभी अभाव को दूर करना होगा। भावी जीवन के प्रति उसे आशाश्वत करना होगा। छात्र संघों के वास्तविक उद्देश्य को समझाना होगा। इसके साथ ही साथ सरकार ने राजनीतिक दलों से पृथक रहने के लिए छात्रों पर कठोर कदम उठाए हैं। इस प्रकार छात्रों ने अपने कर्तव्य को समझें और बहुत आशा है कि विद्यालयों में अनुशासनहीनता की समस्या को सांसद तक समाप्त हो जाएगी।
उपसंहार-इसमें संदेह नहीं है कि छात्रों में असीम शक्ति भरी हुई है। मनुष्य ने झरनों और प्रपात ओके जल को अनुशासित करके असीम शक्ति एकत्रित करने में सफलता प्राप्त कर ली है। यदि छात्रों की इस असीम शक्ति को भी अनुशासित करके देश और समाज कल्याण के कार्यों में लगाया जाए तो निश्चय ही इससे राष्ट्रीय का बहुत बड़ा ही तो होगा।
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